Birth Anniversary : डॉक्टर श्रीराम लागू (Shriram Lagoo) जिन्होंने 42 साल की उम्र में रखा एक्टिंग में कदम
कुछ कलाकार अपने सफर और अदाकारी दोनों में दुर्लभ होते हैं. Shriram Lagoo उन्हीं में से एक थे. उनकी जीवन किसी प्रेरणा से कम नहीं. डॉक्टरी छोड़ एक्टिंग और नाटकों की दुनिया में रम जाने वाले इस महान कलाकार को फिल्मसिटी वर्ल्ड याद कर रहा है.
आज महान कलाकार डॉक्टर श्रीराम लागू जी की जयंती है. 16 नवंबर 1927 को महाराष्ट्र सातारा में जन्मे Shriram Lagoo सिर्फ नाम भर के डॉक्टर नहीं थे. उन्होनें पुणे से मेडिकल की पढ़ाई की थी. फिर लंबी प्रैक्टिस के बाद 3 साल तक तंज़ानिया में नाक कान गला रोग विशेषज्ञ के तौर पर अच्छी खासी पहचान बनाई. लेकिन एक वक्त ऐसा आया जब डॉक्टर लागू को पेशे से ज्यादा जूनून ने बेचैन किया. जिस उम्र में लोग रिटायरमेंट प्लान के बारे में सोचते हैं. डॉक्टर लागू ने उस 42 साल की उम्र में डॉक्टरी छोड़ भारत वापस आने का निश्चय किया वो भी सिर्फ एक्टिंग को शौक जीने के लिए.
महान रंगकर्मियों विजय तेंदूलकर और अरविंद देशपांडे के साथ मिलकर मराठी थियेटर को उसके सर्वोच्च शिखर पर ले जाने वाले Shriram Lagoo में बचपन से ही इस कला के लक्षण दिखने लगे थे. नाटक करने की इच्छा तो जाग गई थी लेकिन ये सब इतना आसान कहां था. पुणे में अपने स्कूल के एक नाटक में एक्टिंग करने का उन्हें मौका मिला तो वहां मंच के भय ने उन्हें परेशान कर दिया. लेकिन इस डर के साथ ही इस छोटे से बच्चे ने अपनी एक्टिंग के जूनून जारी रखा. सबको बड़ी हैरत होती कि किसी भी नाटक में काम करने वाले हर छोटे बड़े कलाकार के संवाद रट जाने वाले इस बालक को स्टेज का फोबिया कैसे हो सकता है. क्योंकि वो स्टेज से परे बेधड़क सबकी मिमिक्री करते, नाटकों की अच्छाई बुराई पर बात करते लेकिन जैसे ही स्टेज पर एक्टिंग की बात आती डर बैठ जाता. यही वजह थी कि बहुत लंबे वक्त तक छोटे श्रीराम लागू स्टेज पर जनता के सामने एक्टिंग करने की हिम्मत न जुटा पाए.
हालांकि पारिवारिक माहौल ऐसा था कि पढ़ाई नहीं रूकी. जबरदस्त तरीके से पढ़ाई करके मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया. इसके बाद जब जीवन थोड़ा पटरी पर आया तो आत्मविश्वास पैदा हुआ और साथ ही स्टेज वाला डर भी जाता रहा.मेडिकल कॉलेज की 5 सालों की पढ़ाई के दौरान ही 5 नाटकों में अभिनय किया और मोनोलॉग करके सबको चकित कर दिया.लेकिन जो सबके साथ होता है वही डॉक्टर लागू के साथ हुआ नौकरी और जीवन चलाने के चक्र में जुनून पिस कर रह गया और आखिरकार बहुत दूर चला गया. डॉ. श्रीराम लागू मुंबई, पुणे में डॉक्टरी की जोर शोर से प्रैक्टिस करने लगे.लेकिन नाटकों और विश्व सिनेमा से जु़ड़ाव एक दर्शक के तौर पर बराबर बना रहा. थोड़ा समय कभी कभार निकालकर छोटे मोटे रोल भी कर लिया करते थे. इसी दौरान साल 1951 में आपका जुड़ना हुआ प्रोग्रेसिव ड्रामेटिक्स एसोसिएशन के साथ लेकिन बाद में 3 बरस के लिए अफ्रीका चले गए डॉक्टरी करने. लेकिन जूनून कहां पीछा छोड़ता है. कसक मन में थी तो सबकुछ छोड़छाड़ कर भारत लौटे और डॉक्टरी से तौबा करके फुल टाइम एक्टर बन गए. ये साल था 1969 और डॉक्टर लागू की उम्र 42 पार कर चुकी थी. लेकिन जूनून ने जवां कर दिया था तो उम्र की परवाह किसे थी. श्रीराम लागू पूरी तरह एक्टिंग, सिनेमा, नाटकों की दुनिया में गोते लगाने लगे लेकिन उन्हें इस उम्र का नुकसान भी झेलना पड़ा और एक इंटरव्यू में उन्होने इस बारे में खुलकर अपनी पीड़ा व्यक्त की थी.
”हिंदी सिनेमा ने मुझे बता दिया कि मेरी लेट एंट्री है, अजीब दिखता था और इस लिहाज से मेरे लिए पिता या अंकल की भूमिका ही लिखी जाती थी. मैंने 150 से ज्यादा हिंदी फिल्मों में काम किया. लेकिन उनमें से ‘घरौंदा’, ‘किनारा’, ‘इनकार’, ‘इंसाफ का तराजू’, ‘साजन बिना सुहागन’, ‘एक दिन अचानक’ और ‘एक पल’ जैसी चुनिंदा फिल्मों को ही याद किया जाता है”
लेकिन इसके उलट मराठी फिल्मों और नाटकों में उनका वर्चस्व था. वो खास अधिकार रखने लगे थे स्टेज पर.इन्हीं में से एक फिल्म थी पिंजरा. इस ‘मराठी म्यूज़िकल’ के निर्देशक महान वी शांताराम थे. फिल्म में वो एक ऐसे अध्यापक श्रीधर पंत का रोल निभा रहे थे जिसे अपने ही कत्ल के जुर्म में फांसी हो जाती है. लेकिन ताज्जुब की बात ये थी कि मराठी में जहां फिल्म ने कमाल किया तो हिंदी में नहीं चली. दोनों ही संस्करणों में डॉक्टर लागू थे. डॉक्टर लागू जिन्हें स्टेज से भय लगता था वही स्टेज उनके लिए मंदिर था. ताउम्र वो स्टेज से जुड़े रहे और 17 दिसंबर 2019 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया. आज फिल्मसिटी वर्ल्ड ने इस महान कलाकार Shriram Lagoo के बेहद खास योगदान और सफर को याद किया. कैसा लगा आपको ये लेख जरूर बताइए.