कमज़ोर कहे जाने वालों को मज़बूत कहती ज़रूरी फ़िल्म ‘फ़्रिज’
फिल्म बच्चों को केंद्र में रखती है। फ़्रिज में बंद कर दिए बच्चे के ज़रिए कहानी कही गई है। सबकुछ ब्लैक एंड वाईट में। बच्चों को लेकर सम्वेदनाएं चिंता का विषय बन चुकी हैं। बच्चों के साथ आमानवीय कृत्यों की खबरें हमेशा बनीं रहती हैं। आए दिन घटती रहती हैं। हम विचलित होकर बैठ जाते हैं। दुनिया चलती रहती है। बदलाव आकर भी नहीं आता।
पीटर मुल्लन की शॉर्ट फ़िल्म ‘फ़्रिज’ पूर्वाग्रहों के विरुद्ध एक ज़रूरी दस्तावेज़ है। एक लड़ाई है। विनम्र जीत है। नब्बे दशक में निर्मित यह फ़िल्म विश्व सिनेमा में ख़ास पहचान रखती है। आर्ट सिनेमा की खूबियां समेटे यह डॉक्यूमेंट हमें झकझोरने का काम करती है। जागरूक बनाती है। संवेदना देती है। पूर्वाग्रहों पर चोट करती है। चकित करती है।

