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SUPER DELUXE HINDI REVIEW : भारत में भी बनतीं हैं वर्ल्ड क्लास फिल्में

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निर्देशक थ्यागराजन की सुपर डीलक्स ले जाती है आपको जिन्दगी की गहराई में..राजनीति के रसातल में, कराती है सिस्टम के सबसे घिनौने स्वरूप का दर्शन, रिश्तों में नैतिकता कितनी सहूलियत भरी बाते हैं वो भी खुलकर साफ साफ बताती है…कितनी जल्दी हम हो जाते हैं किसी भी घटना से प्रभावित सभी को कहती है संकेतों के सहारे ….कैसे ईश्वर में आस्था हमारे लिए सिर्फ चमत्कार की वस्तु है..जब तक ईश्वर न करे कोई चमत्कार आपके जीवन में तब तक डिगा रहता है आपका विश्वास उस खुदा पर से भी….फिल्म पर अपनी राय दे रहैं हैं प्रशान्त प्रखर…


तो कहानी के 4 छोर हैं जो आखिर में एक दूसरे से जुड़ से जाते हैं…तमाम आध्यात्मिक किताबों में कर्म को प्रधानता दी गई है….ये फिल्म उसी कर्म के हिसाब से मिलने वाले फल की बात करती है…कहानी का एक हिस्सा एक पिता का है जिसका एक लड़का है…पिता काफी अरसे बाद घर लौटा है..लौटा है तो वो पुरुष नहीं स्त्री बनकर लौटा है..उसने अपना सेक्स चेंज करा लिया है..महिलाओं की तरह जीवन जीता है..साड़ी श्रृंगार सबकुछ उसे भाता है….घरवाले उसका ये रूप देख अचंभे में हैं..पत्नी दुखी है मगर बेटा खुश है..उसका मानना है कि पिता पुरुष हों या महिला… हैं तो उसके पिता और वो इतने अरसे बाद उसके साथ रहने आएं हैं..पत्नी पीड़ा में है लेकिन वो भी पति को पूरे मन से स्वीकार कर रही है ।


कहानी का दूसरा किवाड़ खुलता है एक नए जोड़े के साथ जिनकी अरेंज मैरिज हुई है..पति स्ट्रगलिंग एक्टर है..जबकि पत्नी मॉडर्न होते हुए भी घर में रहती है…एक रोज़ जब पति घर से बाहर होता है..पत्नी से उसका पुराना प्रेमी डिप्रेशन की हालत में मिलने आता है..दोनों में सेक्स होता है..और इस इंटरकोर्स के दौरान प्रेमी की स्वाभाविक मौत हो जाती है…पत्नी पति को सारी बात बता देती है..दोनों अब लाश को ठिकाने लगाने निकल पड़ते हैं…


तीसरी कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की जो सुनामी में बच गया है..वो एक पत्थर की मूरत को पूजता है..क्योंकि उसी पत्थर को पकड़े रखने से उसकी जान बची थी..उसकी ये आस्था देख कई और लोग भी उसके पास अपनी परेशानियों का समाधान खोजने आते हैं…इस व्यक्ति का एक असिस्टेंट भी है…..इस व्यक्ति की एक पत्नी है जो गरीबी के दिनों में ब्लू फिल्मों की हीरोइन थी..उसका बेटा एक दिन मां की कोई पुरानी फिल्म देख लेता है और ये मान बैठता है कि उसकी मां खराब औरत है…मां को मारने के इरादे से निकला बेटा दुर्घटना का शिकार हो जाता है…मां के पास पैसे नहीं है..पिता अपने बेटे को भगवान के भरोसे ठीक करना चाहता है…बेटा जिन्दगी और मौत से जूझ रहा है….
चौथी कहानी 3 दोस्तों की है..जो बेरोजगार हैं..उन्हें पैसे चाहिए…एक राजनेता के बहकावे में वो एक व्यक्ति की हत्या की सुपारी ले लेते हैं…ये सुपारी मंझे हुए राजनेता का इन लड़कों को टेस्ट करने का ट्रैप होता जिसमें वो फंस जाते हैं…राजनेता तीनों की परेड कराता है…गजब का सीन है..पहला लड़का डरा हुआ है..वो खूब मार खाता है…दूसरा ढीठ है राजनेता उसकी अकड़ देख उसे 2 थप्पड़ देकर छोड़ देता है..तीसरा मार खाने से पहले ही गाल पर हाथ धरे बैठा है..राजनेता मारने की कोशिश करता है मगर वो चकमा देता है..इसी खेल में राजनेता के घर की टीवी टूट जाती है..अब राजनेता को टीवी खरीद कर देनी है तभी इन बेरोजगार लड़कों की जान बचेगी….
इन कहानियों से जुड़ी कुछ और कहानियां और लोग हैं..जैसे पहली कहानी जो पिता की है उसमें एक महाभ्रष्ट पुलिसवाला है जो उसका शोषण करता है……..इस पिता की एक स्याह जिंदगी भी है जिसमें उससे एक पाप हुआ है…हर तरफ से शोषित और मानसिक रूप से दबाव झेल रहा ये शख्स एक दिन अपने बेटे खो बैठता है…पुलिस अधिकारी से बेटे को खोजने की विनती करता है…दुहाई देता है कि अधिकारी ने उसके साथ जो अनाचार किया उस कारण कम से कम उसकी मदद करे..पुलिस अधिकारी उसे दुत्कारता है..डंडे से पीटने लगता है..शोषित और दमन झेल रहा ये पिता क्रोध की अग्नि में जल रहा होता है….इसी अग्नि में वो पुलिस वाले के सर पर हाथ रख उसे मृत्यु का श्राप देता है..समाज में हिजड़े का श्राप कोई नहीं लेना चााहता..मगर पुलिस वाला इसपर भी हंसता है….


दूसरी ओर लाश ठिकाने लगा रहे पति पत्नी को भी वही भ्रष्ट पुलिसवाला देख लेता है जिसने पिछली कहानी में पिता का शोषण किया है…वो इस गतिविधी का वी़डियो बनाता है..पति पत्नी को ब्लैकमेल करना शुरु करता है..सुनसान जगह ले जाकर मामला इस शर्त पर रफा दफा करने को मानता है कि लड़की उसके साथ अपने पति के सामने सेक्स करे…बहुत दबाव के बाद लड़की पुलिस वाले के साथ सोने का मान जाती है….बहुत ही झकझोर देने वाला सीन है जो परदे पर इस वक्त चल रहा होता है….आगे क्या होता है उसके लिए फिल्म देखिए….


तीसरी कहानी में बेटा अस्पताल में जिन्दगी और मौत के बीच झूल रहा है…पिता समुद्र देवता के फेर में पड़ा है…मां बेटे की जिन्दगी उखड़ती देख बौखलाई हुई है..साथ ही बेटे की नजर में चरित्रहीना के छवि के बारे में सोच सोच शून्य में खो जाती है….
चौथी कहानी में तीन लड़के टीवी खरीदने के लिए चोरी का प्लान बनाते हैं..मगर जिस घर में वो चोरी करने पहुंचते हैं..वहां उनके साथ ऐसा वाकया होता है जो दर्शकों के लिए भी शॉक वैल्यू लेकर आता है….


सुपर डीलक्स में अब ये कहानियां कैसे एक दूसरे से जुड़ेंगी..कौन सा वो तार होगा जो इन सारी कहानियो को जोड़ेगा ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी..मेरे न चाहते हुए भी सुपर डिलक्स के प्लॉट ने मुझे कहानी के बारे में इतने खुलासे करने को मजबूर किया है …मेरे हिन्दी में इस फिल्म के बारे में बात करने की वजह भी यही है कि मैं चाहता हूं हिन्दी फिल्मों का खास वर्ग जिसमें मेरे बहुत से मित्र हैं वो सभी इस विस्तार के आधार पर ही सही फिल्म देखने जाएं..


सुपर डिलक्स की खूबी है इसका ओरिजिनल होना..ये अपने कहानी कहने के ढंग, किरदारों का बनावट, प्रतीकों, बैकग्राउंड स्कोर, फिल्माने के तरीके के साथ साथ अपने प्रोडक्शन डिजाइन में बहुत रियल और इकलौती सी लगती है। हर फिल्म की एक आत्मा होती है ..सुपर डिलक्स की भी है जो खूब फलती फूलती है..ये 3 घंटे की फिल्म आपको हर तरह से संतुष्ट कर देती है..फिल्म देखकर निकलने के बाद आपको लगता है कि आपने जितने पैसे टिकट में खर्ज किए फिल्म ने तो उससे कई गुना ज्यादा आपको रिटर्न किया है।


बात करते हैं एक्टिंग की…. सबसे पहले ट्रांसजेंडर शिल्पा बने विजय सेतुपति की बात…आप उन्हें माधवन के अपोजिट फिल्म विक्रम वेदा में देख चुके हैं..कमाल के कलाकार हैं..लेकिन सुपर डिलक्स में वो जैसे खुद को ही चुनौती देते नजर आते हैं…एक ट्रांसजेंडर के रोल में वो स्टिरियोटाइप नहीं होते..उनका ह्यूमर, दुख, खुशी, सवाल सब जायज लगते हैं..


दूसरे नंबर पर बारी आती है समंथा रुथ अकीनेनी की…समंथा इस फिल्म में वो लड़की बनी हैं जिसके साथ इंटरकोर्स के दौरान उसके प्रेमी की मौत हो जाती है…जिस पर पुलिस वाले के साथ सेक्स करने के अलावा बचने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है..पहली परिस्थिति में वो अपने पति को जैसे घटना के बारे में बता रहीं है वो कमाल का बैलेंस एक्ट है..दूसरी घटना में एक लड़की के लिए न बचने की सूरत में ऐसा कुछ करना जिसके लिए वो तैयार नहीं कितना पीड़ा से भरा है वो उसे जीवंत रूप में प्रस्तुत कर देती हैं…समंथा के करियर की ये सबसे दमदार फिल्म है।


पुलिस वाले बर्लिन के रोल में भगवती पेरूमल ने अपने किरदार में इतनी डिटेलिंग लाई है कि आपको यकीन हो जाता है कि ये आदमी ऐसा ही है..जिससे घिन्न आ जाए.. इन तीनों के अलावा फहद फासिल, राम्या कृष्णन, गायत्री, मिस्किन और बाकी के सभी किरदार कमाल के लिखे और उतनी ही खूबसूरती से निभाए गये हैं। वहीं एक बच्चा है रासकुट्टी जो जिन्दगी के मायने समझा जाता है…अश्वंत अशोककुमार ने दिल जीत लिया।


कुल मिलाकर सुपर डिलक्स कितनी अच्छी है इस बात की तस्दीक इस बात से की जा सकती है कि तमिल न जानते हुए भी..तीन घंटे की फिल्म में मुझे कहीं से भी अहसास नहीं हुआ कि मैं किसी और भाषा की फिल्म देख रहा हूं। ये एक थियागराजन कुमारराजा और उनकी टीम का वो सपना है जिसे संभाल कर रखा जाना चाहिए।

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