बात पार्टीशन 1947 की..जिसकी डायरेक्टर हैं गुरिन्दर चढ्ढा..गुरिन्दर ने इससे पहले बेंड इट लाइक बेकहेम और ब्राइड एंड प्रेजुडिस जैसी फिल्में दीं है जिन्हे अंतर्राष्ट्रीय स्तर यानि इंटरनेशनली बहुत तारीफ मिली है..फिल्म में हैं हुमा क़ुरैशी..ओम पुरी, ह्यू बोनविले, गिलियन एंडरसन , मनीष दयाल, तनवीर गनी, डेंज़िल स्मिथ, युसुफ़ खुर्रम और बाकी के ढेर सारे कलाकार..संगीत दिया है ए आर रहमान ने.. फिल्म के निर्माता हैं बीबीसी और बेंड इट फिल्म्स..जबकि डिस्ट्रिब्यूशन की जिम्मेदारी ली है रिलायंस एंटरटैनमेंट और 20थ सेंचुरी फॉक्स ने..
फिल्म पार्टीशन 1947 को लेकर मेरी पहली राय..ये इतिहास की बात करती है मगर बोर नहीं करती.. ये भारत पाकिस्तान बंटवारे पर परदे के पीछे चले खेल पर फोकस करती है..जो इतिहास के जानकार हैं या जिन्होने बंटवारे का इतिहास पढ़ा है वो तो शायद फिल्म की कमियों और खूबियों पर ढेर सारी बात कर सकते हैं..लेकिन एक फिल्म दर्शक के लिए ये एक ऐसी फिल्म है जिसे देखकर निकलने के बाद उसे विभाजन के वक्त के हालात का करीब करीब अंदाजा लग जायेगा..कमी है तो बस ये कि फिल्म लॉर्ड माउंटबेटन का नजरिया दिखाती है…
फिल्म खुलती है ब्रिटिश हुकूमत के आखिरी के दिनो से..ट्रेलर में जितना आपने देखा ठीक वैसे ही अंग्रेजी सरकार लॉर्ड लुईस माउंटबेटन को भारत भेजती है एक जरूरी काम के लिए…वो जरूरी काम था भारत के विभाजन के बाद मुल्क की आजादी ..इस विभाजन के बीच ही फिल्म वाली लिबर्टी लेते हुए रखी गयी है प्रेम कहानी भी..वहीं दूसरी ओर उस ओर के दिग्गज नेताओं मुस्लिम लीग नेता के जिन्ना और कांग्रेस के नेता जवाहर लाल नेहरू के बीच कैसे माउंटबेटन पिसे फिल्म ये भी दिखाती है..प्रेम कहानी है आलिया यानि कि हुमा कुरैशी और जीत यानि कि मनीष दयाल के बीच जो कि वायसराय के ऑफिस में ही काम करते हैं..यहां मेरी तरह आप भी फिल्म के बीच में ही अंदाजा लगा लेंगे कि दोनों अलग धर्म के है तो विभाजन के बाद उनके अलग होने की कहानी होगी..कहानी बांधे रखती है अपनी घटनाओं में..एक के बाद एक होते ड्रामे से…मगर खामी वही है कि ये वायसराय संस्करण है…ये किसी एक आदमी के हिसाब से देखा गया इतिहास है..जिसे बड़ा भारतीय दर्शक वर्ग देखेगा इसमें शक है..
बिना शक ये एक डायरेक्टर की फिल्म है..गुरिन्दर का कंट्रोल फिल्म पर दिखता है…वो बड़े घटनाक्रम तक जाने से पहले मंझी हुई निर्देशिका की तरह कहानी का तापमान बढ़ाती हैं.. फिल्म में ओम पुरी साहब को देखना भावुक कर जाता है… हुमा कुरैशी आलिया के किरदार में हुमा सूट होती हैं…बाकी के कलाकार खास तौर पर माउंटबेन के रोल में ह्यू कमाल लगे हैं..फिल्म का संगीत बढ़िया है और ये फिल्म के साथ जाता है…कुल मिलाकर अगर आपको माउंटबेटन के नजरिए से भारत पाक विभाजन का वक्त समझना हो तो ये फिल्म आपके लिए है..फिल्म को पांच में से साढ़े तीन स्टार्स..
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