गुंजन सक्सेना को लेकर मेरी पहली राय…मुझे फिल्म बहुत पसंद आई..सिर्फ इसलिए नहीं की ये सच्ची कहानी हल्कि इसलिए क्योंकि ये बहुत इमानदार किस्म की फिल्म है…तो सबसे पहले मैं अपने रिव्यू के जरिए अपनी पहली ही फिल्म ढंग से बनाने वाले निर्देशक शरण शर्मा को सलाम करना चाहूंगा..क्योंकि अपनी पहली ही फिल्म में उन्होने वैसी ही फिल्म बनाई है जैसी वो बनाना चाहते थे..फिल्मी फॉर्मूले वाला समझौता ..बेवजह का शोर..इन सबसे से फिल्म को कोसों दूर रखा है…
बात करें गुंजन सक्सेना की कहानी की तो ये सिर्फ एक महिला पायलट बनने की कहानी नहीं है बल्कि परिवार, समाज और प्रोफेशन या बाहरी दुनिया में महिलाओं को किस नजरिए से देखा, तौला और उनकी भूमिका खुद से तय कर दी जाती है उसकी कहानी है..गुंजन जो पहली बार कमर्शियल प्लेन के कॉकपिट में दाखिल होते ही पायलट बनने का सपना संजो चुकी थी..उसे वक्त वक्त पर उसका भाई और मां बताते थे कि लड़कियां प्लेन नहीं उड़ा सकती हैं..उनकी बातों में फिक्र और तरस दोनों होता था..पिता बेटी की आंखों में इस सपने की चमक पहचानते थे तो कभी उसका साथ नहीं छोड़ा लेकिन बाहर की दुनिया इस प्रगतिशील पिता की तरह कहां सोचती है..उसे तो गुंजन को ये एहसास दिलाना था पायलट बनने के बाद भी वो लड़की है जो पुरुषवादी सोच में कमजोर है..और उसकी इस कमजोरी को तो वो प्लेन चलाने की काबिलियत से नहीं पंजा लड़ाने की ताकत से परखती है..लेकिन गुंजन कई पड़ाव और नाजुक मोड़ से गुजरते ..लड़ते हारते जूझते..आशा निराशा सब कुछ सहते एयरफोर्स पायलट बन जाती है और कारगिल के युद्द में अपनी हिम्मत और हुनर दोनों से सबको गलत साबित करती है…
गुंजन सक्सेना की कहानी की सबसे अच्छी बात है ये हर नजरिया पेश करती है..और कहानी को शोर से बचाकर रखती है..ये एक मां, भाई. पिता, समाज, अधिकारी साथ काम करने वाले लोगों से लेकर उसकी दोस्त तक की बात रखती है..ये लोग दुनिया को अपनी सहूलियते के हिसाब से जी रहे हैं जहां गुंजन का उस तयशुदा खांचे से निकलकर कुछ करना वर्जित है..फिल्म के डायलॉग्स में एक मैच्योरिटी है..शालीनता है..सोच और इंसपायर करने की ताकत है..
एक्टिंग पर आते हैं….गुंजन सक्सेना द कारगिल गर्ल के सेंटर में है एक पिता और बेटी का रिश्ता..वो पिता जो अपनी बेटी के सपनों पर यकीन करना कभी नहीं छोड़ता..पंकज त्रिपाठी इस रोल को फिल्म का सबसे अजीज किरदार बना देते हैं…वो असल और पर्दे के बीच की लाइन धुंधली कर देते हैं..खासकर जान्हवी के साथ उनका कीचन सीन आंखों में आंसू ला देता है…जान्हवी कपूर ने अपने करियर का सबसे संतुलित काम किया है….विनीत सिंह का रोल ऐसा है कि आपको इस किरदार पर गुस्सा आएगा और यही विनीत सिंह की जीत है..लेकिन इस किरदार की लंबाई और होनी चाहिए थी ऐसा मेरा मानना है..जान्हवी और उनके टकराव की सीन्स पॉवरफुल हैं जिन्हें कम एक्स्प्लोर किया गया है..अंगद बेदी जंचे हैं..एक आर्मी ऑफिसर की बॉडीलैंग्वेज से लेकर एक भाई का बहन के लिए फिक्रमंद होना ये उलझन वो बखूबी पेश कर पाए हैं..मानव विज का किरदार छोटा लेकिन ऐसा है कि आपके साथ रह जाता है..बाकी के एक्टर्स ने भी अच्छा काम किया है.
फिल्म में कैमरा वर्क शानदार है खासकर हेलिकॉप्टर और वैली के सीन्स बहुत शानदार ढंग से फिल्माए गए हैं..फिल्म का म्यूजिक भी बेवजह के इमोशन क्रिएट करने से बचता है..जो कमी मुझे लगी वो यही कि गुंजन सक्सेना के 40 मिशन में से सिर्फ एक मिशन को दिखाया गया है वो भी बहुत बेजान और प्रेडिक्टेबल है..यहां थ्रिल पैदा किया जा सकता था..बाकी फिल्म अच्छी है..जरूर देखिए..मेरी तरफ से फिल्म को पांच में से 4 स्टार्स..