‘KABIR SINGH’ एक दर्शक की नज़र से !
लखनऊ की रहने वाली प्राची उपाध्याय फिल्मों की शौकीन हैं…वो लगातार हमारे लिए कॉलम भी लिखती हैं लेकिन कबीर सिंह को उनके नजरिए से जरा देखिए..आपको दर्शक की दिलचस्पी और उसका विचार समझ आएगा…
मैं एक आम भारतीय लड़की हूं जिसे फिल्में देखना पसंद है….और इसी पसंद के चलते मैं मुझे जब जहां मौका मिलता है मैं फिल्में देख लेती हूं…कभी थिएटर में तो कभी वेब चैनल्स पर तो कभी टीवी पर….हालांकि जरूरी नहीं की मैं हर मूवी थिएटर में देख पाऊं….
लेकिन मुझे ‘KABIR SINGH’ इतनी जल्दी थिएटर में देखने को मौका और वक्त दोनों मिल गया और मैंने मौके का फायदा उठाते हुए ये फिल्म जाकर देख ली….और अब मैं आपको फिल्म को लेकर अपना ओपिनियन बताने जा रही…हालांकि मुझे मालूम है कि इस क्रिटिक्स और रिव्यूज की दुनिया में मेरी ये ओपिनियन ज्यादा मायने नहीं रखती लेकिन मेरा लिखने और आपका एक बार इसे पढ़ने में हर्ज ही क्या है….
हां, कुछ भी और लिखने से पहले मैं बता दूं कि नीचे spoilers होंगे और मैंने इस फिल्म का ओरिजनल वर्जन ‘ARJUN REDDY’ भी देख रखी है तो थोड़ा Comparison भी होगा….तो खुद की कहानी खत्म करते हुए फिल्म की बात करते हैं….
Kabir Singh….इसको लेकर मैंने–आपने सबने जितने रिव्यूज पढ़े वो ये हैं कि ‘शानदार फिल्म’, ‘शाहिद कपूर की एक्टिंग का माइलस्टोन’, ‘अर्जुन रेड्डी की रिमेक के बावजूद अपनी अलग आईडेंटिटी लिए हुए है फिल्म’….तो मेरे हिसाब से ये सब सच है….सच में फिल्म शानदार है, मैं अकेले फिल्म देखने गई थी (मैं बहुत बार जाती हूं, अगर आप लोग नहीं गए तो जाइए बहुत अच्छा एक्सपीरियंस होता है) और अकेले होने के बावजूद मुझे एक बार भी नहीं लगा कि मैं अपने दाएं–बाएं देखूं (as a timepass u know)….शाहिद की एक्टिंग माइलस्टोन, देखो मैं इतना तो नहीं जानती लेकिन हां फिल्म देखने के बाद ये जरूर बोला कि भगवानजी एक बार शाहिद जैसा प्यार करनेवाला मुझे भी दे दो, गुस्से वाला फैक्टर निकाल दो लेकिन प्यार वाला दे दो…मतलब जिस शिद्दत से वो प्रीति को चाहता है, उसका ख्याल रखता है, उसकी जरा सी तकलीफ पर पगला जाता है, सच बोल रही हूं कि कहीं ना कहीं हर लड़की दिल ही दिल में ऐसे प्यार से ओवर लोडेड आशिक के बारे में सोचती जरूर है…लेकिन हां उसका गुस्सा बाबा रे वो 50% से 70% कम ही हो तो सही….अब बात अलग आईडेंटीटी की….हां फिल्म रिमेक होने के बावजूद अपने आप में आप को इस कदर एंगेज रखती है कि जब भी स्क्रीन पर कबीर और प्रीति साथ नजर आते हैं तो आपके चेहरे पर स्माइल आती है और जब कबीर खुद को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ता को आप मन में (कुछ थिएटर में चिल्ला के भी) कहते है कि ‘साले भूल जा उसे, चली गई वो…..तुझे कोई भी और मिल जाएगी’….ये इम्पैक्ट है फिल्म का…वहीं ये एक लवस्टोरी के अलावा एक ग्रेट फैंडशिप स्टोरी भी है….कबीर और शिवा की….आप कबीर और शिवा की जोड़ी से खुद को जुड़ा हुआ पाते है और सोचते है कि यार ऐसा दोस्त सबको मिले (हालांकि खुद वैसा दोस्त बनने की चाह जगती है या नहीं वो तो आप ही जानो)….
अब थोड़ा कम्पेरिजन हो जाए……..
अर्जुन रेड्डी ने रातों–रात विजय देवरकोंडा को स्टार बना दिया था और कबीर सिंह ने शाहिद के स्टार होने की वजह पर अगर कोई धूल जमी हो तो उस पूरी तरह से साफ कर दिया…कबीर सिंह पूरी की पूरी शाहिद कपूर की फिल्म है….मैंने अर्जुन रेड्डी देखी है तो इसीलिए हर सीन में मेरे मन में आ रहा था कि ये सीन तो अर्जुन रेड्डी की पूरी कॉपी है लेकिन कहीं भी ये नहीं आया कि शाहिद ने विजय की कॉपी की है….38 साल के शाहिद कपूर हर एंगल से 24 साल के कॉलेज गोइंग बॉय लग रहे हैं…हां, लेकिन फिल्म में अगर कोई शाहिद के बाद छाया है तो वो उसका दोस्त शिवा (सोहम मजूमदार)…शाहिद जैसे एक्टर के होने के बावजूद सोहम फिल्म में हर जगह नजर आते हैं….क्या दोस्त है यार होश में लाने के लिए कबीर को ड्रग देने से लेकर उसकी प्राईवसी के लिए होस्टल का एक पूरा विंग खाली कराने तक शिवा की दोस्ती का कोई जवाब नहीं होता….कबीर सिंह वाले सोहम मजूमदार या फिर अर्जुन रेड्डी वाले राहुल रामाकृष्णन (शिवा का किरदार निभाने वाले एक्टर) दोनों ने ही अपने किरदार को यूं निभाया कि देखनेवाले हर किसी का दिल बोला यार ऐसा दोस्त चाहिए लाइफ में….
अब बात कियारा आडवानी की जो कबीर सिंह में उसके लव इंट्रस्ट प्रीति के किरदार में नजर आई हैं….जिसके लिए कबीर बर्बाद की राह पर निकल जाता है (सीधी भाषा में बोले तो पगला जाता है) तो भाई अर्जुन रेड्डी की प्रीति (शालिनी पांडे) और कबीर सिंह की प्रीति (कियारा आडवाणी) के बीच अगर देंखे तो यहां बाजी मारी है अर्जुन की प्रीति यानी शालिनी पांडे ने….अर्जुंन रेड्डी शालिनी की पहली फिल्म थी लेकिन इसके बावजूद वो काफी जेन्यूइन और क्यूट लगी…वहीं कियारा आडवाणी ने कोशिश तो की लेकिन उनकी कोशिश में शालिनी पांडे की झलक कई बार नजर आई….जैसे लास्ट सीन जहां वो और कबीर पार्क में मिलते हैं उस क्लाईमैक्स में भी कियारा के एक्सप्रेशन (मुझे पर्सनली, कोई पब्लिक राय नहीं बनाए प्लीज) शालिनी से काफी ज्यादा मिलते जुलते लगे….
तो इतनी लंबी कथा लिखने के बाद मैं इसको अब वाइंडअप करूंगी और लास्ट में ये ही कहूंगी कि एक बार तो जरूर कबीर सिंह देंखे….एक हाई ऑन इमोशन और इंटेनसिटी वाला रोमांस जो अंदर तक घूस जाता है….ऐसा इश्क जो कई फ्लिंग और अफेर्यस के बाद भी खत्म नहीं हो पाता….प्यार की गहराई इस कदर कि जो अपने खत्म होने के बाद भी दूसरे से प्यार नहीं करने देता….दिलों–दिमाग से बाहर निकलता हीं नहीं, अड़ जाता है….वो या तो बना देता हैं (जैसा फिल्म ‘meri shadi me jarur aana’) या फिर बर्बादी की कगार पर खड़ा (kabir singh) कर देता है….और हम इंडियन्स तो वैसे भी इतने इमोशनल समझे जाते है, जो एवैंजर्स एंडगेम में आईरनमैन के मरने पर एक वीक तक दुख मनाते है, वो स्क्रीन पर कबीर का पागलपन देखकर उसके लिए दुआ करने से भी नहीं चुकते….इसलिए मेरी मानो तो एक बार तो जरूर देखों कबीर सिंह, उसके जैसा आशिक पर्दे पर बार–बार नहीं आता….