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Birthday Special: हीरो बनने आए विनोद खन्ना को जब साइड विलेन बनना पड़ा

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विनोद खन्ना का जन्म 7 अक्टूबर, 1946 को पेशावर, पाकिस्तान में हुआ था. विभाजन के बाद उनके परिवार ने मुंबई में आकर अपना जीवन शुरू किया. पिता किशनचंद्र खन्ना जो कि एक बिजनेसमैन थे वो नहीं चाहते थे कि विनोद फिल्मों में आएं लेकिन विनोद को शुरू से एक्टिंग में ही आना था. बेटे की जिद के आगे पिता को झुकना पड़ा लेकिन शर्त ये थी कि अगर 2 सालों में उनका सिक्का फिल्मों में नहीं जमा तो पिता का कारोबार संभालना पड़ेगा. जिस समय विनोद खन्ना ने फिल्मी दुनिया में एंट्री ली उस समय हीरो के लिए जो कुछ भी पैमाने रखे गए थे उन पैमानों से ज्यादा विनोद खन्ना के पास काबिलियत थी. वो पंजाब के गबरू जवान थे, रंग गोरा, अच्छी लंबाई और बेहद खूबसूरत लगते थे.

फिल्म इंडस्ट्री में कोई गॉड फादर न होने से उन्हें मुश्किल हुई. शुरुआत में छोटे रोल करने से भी परहेज नहीं किया. बनने हीरो आए थे लेकिन पहली ही फिल्म में विलेन का रोल मिला.विनोद खन्ना को पहला ब्रेक सुनील दत्त की फिल्म ‘मन का मीत’ में मिला. ये फिल्म सुनील जी ने अपने भाई सोम दत्त को लांच करने के लिए बनाई थी और अभिनेत्री लीना चंद्रावरकर भी इस फिल्म में थीं.फिल्म बुरी तरह पिट गई लेकिन विनोद खन्ना और लीना चंद्रावरकर को फिल्म इंडस्ट्री ने नोटिस कर लिया था. बाद में जो फिल्में विनोद जी ने कीं वो थीं पूरब और पश्चिम, सच्चा झूठा, आन मिलो सजन, मस्ताना, मेरा गांव मेरा देश और ऐलान लेकिन इन फिल्मों से विनोद खन्ना को खास फायदा नहीं हुआ. मगर इंडस्ट्री को ये बात पता चल गई कि विनोद खन्ना के अंदर दम है. इसके बाद इम्तिहान, इनकार, अमर अकबर एंथनी, लहू के दो रंग, कुर्बानी, दयावान और जुर्म जैसी फिल्मों ने उनका लोहा मनवाया. एक समय ऐसा आया जब विनोद खन्ना को अमिताभ बच्चन के समानांतर माना जाने लगा. लेकिन जब उनका सबसे बेस्ट टाइम आया तो विनोद खन्ना स्टारडम को छोड़ ध्यान और आध्यात्म की तरफ मुड़ गए आचार्य रजनीश यानि ओशो की शरण में अमेरिका तक चले गए.

वहां उस दौरान का एक किस्सा है कि उन्हें अपना हमशक्ल मिला जो आटोमोबाइल क्षेत्र में था लेकिन उस घटना की इससे ज्यादा ब्यौरा उनकी याद्दाश्त में नही था.लौट कर जब मुंबई वापस आये तो स्टारडम जा चुकी थी. फिर साल 1998, 1999, 2004 और 2014 में वे पंजाब के गुरदासपुर क्षेत्र से भाजपा की टिकट पर सांसद चुने गए. 2002 में वे संस्कृति और पर्यटन मंत्रालय के केंद्रीय मंत्री भी रहे. उन्हें आखिरी बार लोग फिल्म दबंग में सलमान के पिता के किरदार में याद करते हैं.

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