35 साल पहले..1982 की सर्दियों के वक्त..जाने माने फिल्मकार सत्यजीत राय को उनके दोस्त और साइंस फिक्शन लेखक सी क्लार्क ने फोन किया..बात गंभीर थी…श्रीलंका में रहने वाले क्लार्क ने अपने हालिया लंदन दौरे पर स्टीवन स्पीलबर्ग की साइंस फिक्शन फिल्म ई.टी देखी थी…फिल्म देखने के बाद क्लार्क हैरत में थे..क्लार्क हैरान इस बात से थे कि स्पीलबर्ग की फिल्म की कहानी और राय की साठ के दशक में लिखी गयी द एलियेन के बीच कोई खास फर्क नहीं था…क्लार्क ने राय की कहानी सुनने के बाद उन्हे हॉलीवुड को ये कहानी बताने की गुजारिश की…साल 1967 में एक वक्त पर कोलंबिया पिक्चर्स ने राय की कहानी में दिलचस्पी दिखायी भी..और उस वक्त के टॉप हॉलीवुड स्टार्स पीटर सेलर्स और स्टीवन मैक्वीन को फिल्म में लेने की बात भी चली..लेकिन फिल्म के फ्लोर पर जाने में देरी होने लगी और आखिरकार प्रोजेक्ट बंद कर दिया गया..राय ने इस फोन कॉल का ब्यौरा साल 1983 में इंडिया टुडे को दिये एक इंटर्व्यू में दिया..उन्होने इस इंटर्वूय में कहा कि न ही ईटी और न ही स्पीलबर्ग की 1977 में आयी फिल्म क्लोज एनकाउंटर विद द थर्ड काइंड बन सकती थीं बिना उनकी स्क्रिप्ट को आधार बनाये हुए..
असीम आगे कहते हैं.. कि कोलंबिया यूनिवर्सिटी में बतौर जर्नलिज्म का विद्यार्थी होते हुए..और राय और स्पीलबर्ग दोनों का फैन होते हुए..इस इंटर्व्यू ने मेरा ध्यान खींचा…मुझे याद है कि राय की द एलियन के स्केच मैने मैरी सीटेन्स की किताब पोट्रेट ऑफ ए डायरेक्टर सत्यजीत राय में देखे और ताज्जुब की बात ये है कि वो क्लोज़ एंनकाउंटर के क्रीचर्स के काफी करीब थे.. मैने अपने प्रोफेसर्स को बोला…लेकिन चुनौती क्लार्क..राय और स्पीलबर्ग से बातचीत करने की थी..मैने अपने टाइपराइटर उठाया और क्लार्क को लेटर लिखा..उसके पब्लिशर को पोस्ट किया..एक खत राय को लिखा.जिसमें कई सारे सवाल थे….मुझे उनके बिशप लेफ्रॉय रोड वाले कलकत्ता वाले पते की जानकारी न्यूयॉर्क में भारतीय दूतावास से मिली..मैने उसी दौरान स्पीलबर्ग की एंबलीन एंटरटैनमेंट ऑफिस को फोन लगाया मगर दुर्भाग्य से बातचीत नहीं हो पायी..
मैने बड़े धैर्य के साथ राय और क्लार्क के जवाब का इंतजार करने लगा इसी बीच कोलंबिया यूनिवर्सिटी के मेरे एक दोस्त ने मुझे हैरान किया..उसके पास एलियन की स्क्रिप्ट मौजूद थी..उसे वो स्क्रिप्ट मर्चेन्ट आईवरी के प्रोडक्शन में काम करने के दौरान मिलीं थीं.. राय भी मर्चेंट और जेम्स आईवरी के काफी करीब थे…उन्होने हाउसहोल्डर की एडिटिंग के साथ शेक्सपीयर वल्लाह में संगीत भी दिया था..स्क्रिप्ट पढ़ते हुए मुझे एहसास हुआ कि क्लार्क सही थे..ईटी और द एलियन में काफी समानताएं थीं..
राय का एलियन धीरे चलने वाला…तीन उंगलियों वाला था जबकि ईटी भी धीरे चलने वाला चार उंगलियों वाला था..
राय का एलियन भी ईटी की तरह हीलिंग पावर से लैस था..दोनों पौधों को जिन्दगी दे सकते थे..इसके अलावा कई और समानताएं भीं थीं..
खैर..कुछ वक्त बाद जब मुझे अपने पत्रों का कोई जवाब नहीं मिला तो..तो मैने क्लार्क के नंबर की जानकारी जुटाई और वो इंटरव्यू के लिए तैयार हो गये..मेरा इंटरव्यू काफी बेहतरीन गया..वो काफी गर्मजोशी से बात किये…बहुत दोस्ताना तरीके से…उन्होने कहा- मैरे सत्यजीत राय को सलाह दी कि वो स्पीलबर्ग को विनम्रता भरा पत्र लिखें..और कहें कि उनकी और स्पीलबर्ग की कहानी में काफी समानताएं हैं..लेकिन पत्र में ये भी लिखें कि इसके लिए वो कोई धमकी या चार्ज उनपर न लगाएं..
इसके बाद मैने मैरी सेटन को कॉल किया..पांच मैरी सेटन में से आखिरकार सही सेटन की हिदायत के साथ शौतोजीत का नंबर मिल ही गया..उन्होने हिदायत दी कि उन्हे सुबह 6 से 7 बजे के बीच ही कॉल करूं..इस दौरान वो अपने डेस्क पर बैठते हैं..
और मैने न्यूयॉर्क से उन्हे फोन लगाया..उन्होने फोन उठाया..और बोले..कि उन्हें मेरा पत्र मिला और वो जल्द ही उसका जवाब देने वाले थे..लेकिन मुझे उनका तुरंत इंटरव्यू करना था..राय मान भी गये..राय ने राय ने तब तक ईटी नहीं देखी थी.. लेकिन इसके बावजूद उन्होने कलकत्ता के एटॉर्नी से बात कर रखी थी स्पीलबर्ग को नोटिस भेजने की..उन्होने कहा कि कोलंबिया पिक्चर्स ने उनकी स्क्रिप्ट की दर्जनों कॉपियां उस दौर में सर्कुलेट की थीं..
लेकिन वो जानते थे कि स्पीलबर्ग ने बेहतर बदलाव किये थे जिसके आधार पर उनके खिलाफ चोरी का आरोप नहीं लगाया जा सकता था..राय की मुश्किल भारत से इस मसले को पत्रों के जरिए डील करने की थी..उस वक्त वो घरे बाहिरे नाम की फिल्म भी बना रहे थे..लेकिन स्पीलबर्ग ने जो सबसे बड़ा नुकसान राय का किया वो ये कि बहुत जल्दी उनसे वो मौका छीन लिया जिस पर वो एक बेहतरीन फिल्म बना सकते थे..लेकिन राय स्पीलबर्ग को बगैर दुर्भावना के बेहतरीन फिल्मकार मानने से भी नहीं चूके।
मेरे इस आर्टिकल को कोलंबिया न्यूज सर्विस ने कई जगह प्रसारित किया..ये स्टोरी उस साल के एकेडमी अवार्ड्स के बीच में आयी..और गांधी और ईटी दोनों कॉम्पटिशन में थीं..कुछ रिपोर्टर्स ने ये आरोप लगाया कि मैने इस वक्त ये कहानी छापी क्योंकि मैं गांधी को जीतते देखना चाहता हूं..लॉस एंजेल्स टाइम्स ने तीन फॉलोअप स्टोरी मेरे आर्टिकल पर कीं..पहचान छुपाकर स्पीलबर्ग के ऑफिस का हवाला देकर लिखा कि डायरेक्टर राय फ्रस्ट्रेट हो गये हैं..मैं नहीं मानता कि आर्टिकल ने कुछ बदला..लेकिन हम सब ये जानते हैं कि गांधी को 8 अवार्ड और ईटी को चार अवार्ड्स मिले..वो भी टेक्निकल श्रेणी में..मैने राय को फिर समाचार पत्रों की क्लिपिंग के साथ लिखा..वो गुस्सा हुए..उन्हे महसूस हुआ कि मेरे आर्टिकल ने उनका नाम खराब किया..मेरा दिल डूब गया..
स्पीलबर्ग ने कभी मेरे आर्टिकल पर जवाब नहीं दिया..लेकिन उन्होने राय के साथ शान्ति बना ली..बहुत कम लोग जानते हैं कि स्पीलबर्ग और स्कॉरसीज और मर्चेंट आइवरी टीम ने राय को 1992 में ऑनररी ऑस्कर देने के फैसले को सपोर्ट किया..
The author is an is an independent writer, film festival programmer and the author of Shashi Kapoor: The Householder, The Star. He admits crying each time he watches E.T.