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साल 1964 की ‘यादें’ जो अपनेआप में एक इतिहास थी

साल 1964 की बेहतरीन क्लासिक फिल्म के बारे में कुछ दिलचस्प बातें बता रहीं हैं हमारी सीनियर राइटर प्राची उपाध्याय

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   साल 1964 की बात है एक फिल्म रिलीज हुई ‘यादें’….फिल्म के पोस्टर में केवल सुनील दत्त का ही चेहरा नजर आ रहा था….हालांकि उस पोस्टर में उनके कई तरह से एक्सप्रेशन थे लेकिन उसके अलावा फिल्म की किसी भी और तरह की कोई जानकारी उस पोस्टर पर नहीं थी….

     सबसे खास बात ये थी कि उस वक्त से कामयाब सितारों में गिने जानेवाले सुनील दत्त इस फिल्म से निदेशन के क्षेत्र में भी कदम रखने जा रहे थे….तो लिहाजा आम से लेकर खास हर किसी में फिल्म को लेकर खास दिलचस्पी थी….

    …और फिर रिलीज हुई उस वक्त की सबसे अलग, उस दौर की पारिवारिक फिल्मों से बिलकुल जुदा एक फिल्म….जहां एक और फिल्मों में कई-कई कलाकारों की भरमार होती थी, अलग-अलग और बेहद शानदार सेट्स होते थे….आउटडोर लोकेशनों पर गाने शूट होते थे….वहीं इस फिल्म में केवल एक कलाकार और एक ही सेट था…..

   ये थी साल 1964 की सबसे अनयूजवल फिल्म ‘यादें’….जिसने गिनीज बुक्स ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया दुनिया की पहली ‘केवल एक कलाकार वाली फिल्म’ होने का….

    फिल्म की कहानी अनिल मेहरा (सुनील दत्त) और उसकी यादों की है…..जो उसके अंदर के भावनाओं के ज्वालामुखी को कभी जागती है तो कभी बुझती है…..बात एक रात की है जब अनिल घर पहुंचता है और पाता है कि उसकी पत्नी और बच्चे घर पर नहीं है….पहले वो उनको घर के हर हिस्से में खोजता है फिर नहीं मिलने पर सोचता है कि शायद उसकी पत्नी बच्चों को लेकर फिल्म देखने गई होगी….लेकिन जब उसे उसकी पत्नी का खत मिलता है जिसमें उसने अपने दोनों बच्चों के साथ उसे हमेशा के लिए छोड़कर चले जाने की बात कही होती है….तो उसके अंदर भरा हुआ भावनाओं का गुबार फूट जाता है….पहले वो अपनी बीवी को बहुत बुरा-भला कहता है, छोड़कर चले जाने के लिए कोसता है….लेकिन फिर धीरे-धीरे वो उसकी यादों में खोने लगता है….और फिर वो ही यादें उसे अंदर ही अंदर खाने लगती है….वो खुद को कोसने लगता है, अपना घर टूटने के लिए अपने आप को जिम्मेदार मानने लगता है….हालात इस कदर बिगड़ जाते है कि वो अपनी पत्नी और बच्चों के दूर जाने का जिम्मेदार खुद को मानते हुए मौत के मुहाने पर जा खड़ा होता है….

      पूरी फिल्म एक तरह का मोनोलॉग की तरह है जो सुनील दत्त बोलते है….कभी अपनी पुरानी जिंदगी याद करते हुए, तो कभी अपने मौजूदा वक्त को धिक्कारते हुए….लेकिन सबसे खास बात ये है कि पूरी फिल्म में एक ही कलाकार जिस पर हर वक्त कैमरे की नजर होते हुए भी सुनील दत्त एक ‘arrogent yet helpless’  आदमी के किरदार को बखूबी से निभाते है….फिल्म एकाकी के जीवन की उस सच्चाई को भी काफी हद तक सामने लाने में कामयाब होती है जहां आप कब दूसरों से गुस्सा होते-होते खुद से नाराज हो जाते हैं और उस नाराजगी में डिप्रेशन की गहरी खाई में डूबने लगते हैं….और बिना किसी शक सुनील दत्त ने उस तकलीफ को पर्दे पर लाने की बेहद कामयाब कोशिश की…

       फिल्म में दूसरे किरदार के तौर पर नर्गिस का वोइसओवर चलता रहता है….जिससे अनिल बात किया करता था….नर्गिस के किरदार का नाम प्रिया है जो अनिल की पत्नी है…..वो कहीं नजर नहीं आती है केवल उनकी आवाज सुनाई देती है….वहीं फिल्म में और किरदारों को दर्शाने के लिए भी उस वक्त के हिसाब से काफी स्मार्ट टेक्निक इस्तेमाल की गई है….ज्यादातर किरदार आवाजों और परछाईय़ों के जरिए अपनी मौजूदगी का अहसास कराते हैं… तो वहीं कई जगहों पर स्केच और बलून का भी यूज करते हुए किरदारों को डिपिक्ट किया गया है….फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक भी आपको फिल्म को समझने में मदद करता है….खास बात ये कि एक ही सेट पर पिक्चराईज हुई ये एक ही कलाकार वाली फिल्म में दो गाने भी है….जो सिचुएशन पर फिट बैठते है….

     हालांकि अपने वक्त से आगे की सोच और समझवाली इस फिल्म को उस वक्त दर्शकों ने नकार दिया था….और एक नए निर्देशक के तौर जो रिस्क सुनील दत्त ने लिया था उसके लिए उस वक्त की ऑडियंस शायद तैयार नहीं थी….लेकिन इस फिल्म की असफलता ने दत्त साहब को तोड़ा नहीं….बल्कि यादें के बाद भी सुनील दत्त अजंता आर्ट्स बैनर के तले कई शानदार फिल्में बनाते रहे….

      बीते वक्त में एक माइलस्टोन मानी जानी वाली इस फिल्म को अपना ड्यू क्रेडिट काफी देर से मिला…लेकिन उस दौर में ऐसी फिल्म बनाने का सोचना और उसे बनाकर दिखाना आसान नहीं था…मदर इंडिया में नेगेटिव किरदार से लेकर पड़ोसन में कॉमेडी तक बॉलीवुड में अपना अलग मुकाम बना चुके दत्त साहब ने एक ऐसी फिल्म बनाने का सोचा जिसकी उससे पहले किसी ने दुनिया में कल्पना भी नहीं की थी…

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