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सिनेमा की सोच और उसका सच

सिनेमा- ‘राजनीति’ का ‘गुलाल’ या ‘युवा’ की ‘आंधी’: इंतज़ार कीजिए फिल्मसिटी वर्ल्ड की दिलचस्प सीरीज़ का…

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देश में तीन चीजों की डिमांड या यूं कहें कि पूछ सबसे ज्यादा है….सिनेमा..क्रिकेट और तीसरा जो सबसे अहम है वो है राजनीति…और इन सभी को अपने आगोश में समेट लेता है सिनेमा का पर्दा…यहां आप 70 MM की स्क्रीन पर क्रिकेट का फिल्मांकन भी देख सकते हैं और राजनीति का गंभीर स्क्रीन प्ले भी देख सकते हैं…साथ ही सिनेमा ऐसा क्षेत्र है जो अपने आप को भी पर्दे पर गाहे-ब-गाहे उकेरता रहता है….
चूंकि…देश में राजनीति का माहौल बेहद गर्म है और आने वाले कुछ दिनों में ये माहौल अपने चरम पर होगा…ऐसे में हमने ये सोचा कि क्यों ना एक सीरीज उन फिल्मों की शुरू की जाए जो विशुद्ध रूप से भारतीय राजनीति को पर्दे के जरिए दर्शकों के सामने रखती हैं….एक-एक करके ऐसी फिल्मों के किस्से उनकी समीक्षा और उसके संदेशों को आपके साथ साझा करेंगे….चाहे बलराज साहनी की ‘गरम हवा’ की हो या फिर आज के दौर की मौजूदा ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ की… सिनेमा के लिए राजनीति हमेशा से एक मौजू सब्जेक्ट रहा है….
आप ऐसी फिल्मों के किस्सों में मत उलझिएगा जिनका एक मात्र उद्देश्य नेताओं को करप्ट दिखाना है…दरअसल राजनीति को छूने का ये एक सतही पहलू है….80-90 के दशक में ऐसे तमाम कैरेक्टर्स की फिल्मों में भरमार होती थी…और सच मानिए इन्ही कैरेक्टर्स की वजह से लोग नेताओं को बड़ी हेय दृष्टि से देखने लगे….
ऐसे फिल्मों की गिनती बहुत कम है…जो रिसर्च करके बनाई गई हों…या फिर अगर किसी काल्पनिक राजनीति को पर्दे पर उतारा गया है तो वह आखिर में सच्चाई के कितने करीब है….इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर ही हम अपने सिनेमा से कुछ गिनी-चुनी फिल्मे निकाल सकते हैं…फिल्म सिटी वर्ल्ड पर आपको हम विस्तार से ऐसी फिल्मों से मिलवाएंगे जो वाकई में भारतीय राजनीति के काफी करीब होंगी….
सीरीज का इंतजार जरूर करिए…

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