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सिनेमा की सोच और उसका सच

देखिए ना कहां से कहां तक आ गये हम : विधु विनोद चोपड़ा

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पुराना ख्वाब क्यों मानते हैं वज़ीर को ..

ये कहानी सितंबर 88 में शुरु हुई थी..एक आर्टिकल एलिस्ट्रेटेड वीकली में पढ़ा था और उस पर ये कहानी लिखी..तब वो कहानी का नाम मैने फिफ्थ मूव लिखा था..वजीर 2016 में आयी और फिल्म ठीक ठाक चली..इसपर बात इसलिए कर रहा हूं क्योंकि ये कहानी मेरे दिल के बेहद करीब रही है। आप खुद सोचिए कि 88 की फिल्म अगर 2016 में सामने आयी तो मेरी फिल्म मेकिंग ऐसी ही है..

फिफ्थ मूव क्यों नहीं बन पायी हॉलीवुड में.

हुआ यूं कि 88 में जब कहानी लिखी तब वो पहला ड्राफ्ट था और फिल्म को लिखने में तीन साल लग गये..उसी दौरान मेरी सिनेमाई जिन्दगी में लेखक अभिजात जोशी ( मुन्नाभाई, थ्री इडियट्स और पीके फिल्म के लेखक) आये..अभिजात के साथ मिलकर फिल्म को एक अलग लेवल पर मैं ले गया और फिर हॉलीवुड स्टुडियोज़ में बात चली..बात बन भी गयी..बॉबी न्यूमॉयर हमारी फिल्म के प्रोड्यूसर थे और हमने 2000 के बाद डस्टिन हॉफमैन जैसे शानदार कलाकार के साथ रिहर्सल भी शुरु कर दी लेकिन दुर्भाग्य ऐसा कि हमारे निर्माता की असमय मौत हो गयी और बस फिल्म वहीं रुक गयी..फिर हम हिन्दी फिल्मों की तरफ लौट आये..मिशन कश्मीर मुन्नाभाई थ्री इडियट्स बनाने में ये फिल्म कहीं रह गयी पीछे…हॉलीवुड वाला सपना पूरा हुआ मगर   फिफ्थ मूव नहीं बल्कि ब्रोकन हॉर्सेज़ के जरिए। बाद में बिजॉय नॉम्बयार मेरी जिन्दगी में आये और उन्होने ये स्क्रिप्ट चुनी बनाने के लिए।

आपकी परवरिश और जिन्दगी के कुछ अनछुए पहलु बताइये.

मेरी कोई फॉरमल एजुकेशन नहीं हुई ये मान लीजिए…कश्मीर के डीएवी स्कूल में पढ़ाई हुई…घर में सब काम कर लेता था..हमारी मां हमसे भजन लिखवाती थीं..तो शायद वहीं से बीज पड़े।

जिन्दगी में मुश्किल कहां कहां रही।

मेरी जिन्दगी में जब खाने को भी पैसे नहीं थे तब भी सिनेमा संघर्ष जारी रखा..पुणे के फिल्म इंस्टिट्यूट से भी हम सिर्फ सीखना चाहते थे …हम क्लासेज छोड़ते मगर सीखने के लिए क्योंकि जैसा मैने थ्री इडियट्स में कहा है कि काबिल बनो कामयाबी झक मारकर पीछे आयेगी..तो हम डिग्री नहीं चाहते थे..वैसे आपको एक दिलचस्प बात बताऊं( जोर से हंसते हुए) फिल्म इंस्टिट्यूट ने हमें डिग्री नहीं दी क्योंकि हम फेल हो गये थे उनकी नजर में वो तो जब हमे इतनी ख्याति मिली तब जाकर उन्होने हाल ही में डिग्री दी। सजाए मौत बनायी..खामोश, फिर परिन्दा 1942 ए लव स्टोरी मिशन कश्मीर और अब पीके तक…कहां से चला था कहां तक पहुंच गया यही पूंजी है।

अभिजात जैसे लेखक से कैसे मुलाकात हुई।

अभिजात से मुलाकात क्रियेटिव रही..उनसे मुलाकात बर्मिंघम में हुई और मैने उनका एक प्ले देखा वहां जो मुझे बहुत पंसद आया..फिर वो मुंबई आये और आप भी हंसेंगे कि उन्होने मेरे लिए पहली फिल्म एक घटिया सी फिल्म लिखी..बॉबी द्योल वाली करीब उन्होने मेरे लिए लिखी थी( हंसते हुए).  लेकिन उनकी प्रतिभा से प्रभावित रहा हूं और 22-23 साल से हम साथ काम कर रहे हैं। वो एडिट टेबल पर भी कहानी में प्रवाह बना सकते हैं।

कश्मीर की यादों पर बात हो तो क्या याद आते है..

कश्मीर मेरा घर है..जो हूं वो कश्मीर की वजह से हूं..मेरे स्कूल के मित्र वहां हैं..एक सुकून था वादी में..हम डल लेक में दो दो चार चार घंटे रहते थे..हमारी परवरिश में कश्मीर बहुत जरूरी है..मेरी आत्मा में वहां का सुकून है।

संजय दत्त की बायोपिक की शूट जारी है.क्या कुछ चल रहा है उसमें।

संजू की बायोपिक जोरों से जारी है..शूट काफी शानदार जा रही है..सबकुछ बेहतरीन जा रहा है.मुन्नाभाई की भी स्क्रिप्ट लॉक हो गयी है..तो हम हड़बड़ी में नहीं है..बस हम इंतजार करते हैं सही वक्त का..सिनेमा हमारे लिए पैसा बनाना कतई नहीं इसलिए हम जुनून और खुशी से काम करते हैं।

मुन्नाभाई का जिक्र छेड़ा है तो आपसे जानना चाहेंगे कि पहला शो जब हुआ तो कैसा रिस्पॉन्स आया था।

– आप यकीन नहीं करेंगे कि मुन्नाभाई का पहला रिएक्शन हमें पुणे से मिला था और थियेटर में सिर्फ तीन लोग बैठ के फिल्म देख रहे थे। लेकिन धीरे धीरे फिल्म ने रफ्तार पकड़ी वो आजतक कायम है।

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