Special Feature : आज़ादी से पहले के आज़ाद आर्टिस्ट
इस विशेष फीचर रिपोर्ट में हमारी सीनियर राइटर प्राची उपाध्याय लेकर आयी हैं उन कलाकारों का ब्यौरा जिन्होने भारतीय सिने जगत की नींव रखने में अहम भूमिका निभाई.
Indian Cinema डिजिटल युग में दाखिल हो चुका है..रचनात्मकता का जो बीज आजादी कई साल पहले बोया गया था वो आज महान समृद्ध वृक्ष में तब्दील हो चुका है..नये दौर का सिनेेप्रेमी उन सभी लोगों से अनजान है जिन्होने परदे पर चलते फिरते दृश्य पेश करने की कल्पना को साकार किया…इस विशेष फीचर रिपोर्ट में हमारी सीनियर राइटर प्राची उपाध्याय लेकर आयी हैं उन कलाकारों का ब्यौरा जिन्होने भारतीय सिने जगत की नींव रखने में अहम भूमिका निभाई….1930s, 1940s के दौर के वो एक्टर्स, डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर्स जिनके फिल्में दशकों तक यादगार रही…..और उनके दिखाए रास्ते पर बॉलीवुड ने इतना लंबा सफर तय किया…
1- दादा साहब फाल्के:
धुंडिराज गोविन्द फाल्के जिनको हम आमतौर पर दादा साहेब फाल्के के नाम से जानते है…दादा साहेब फाल्के को Indian Cinema का पितामाह माना जाता है…दादा साहेब का जन्म 1870 में नासिक के पास त्र्यंबकेश्वर में हुआ था…उनकी सारी पढ़ाई मुंबई में ही हुई…बताया जाता है कि साल 1911 में उन्होने मुंबई में ईसा मसीह पर बनी एक मूक फिल्म ‘Life of Christ ’ देखी…जिसको देखने के बाद उनके अंदर फिल्मों को लेकर खलबली मच गई…उन्होने सोचा कि जिस तरह से इस फिल्म में ईसा मसीह के जीवन को दिखाया गया है…उसी तरह से वो भी अपने भारतीय देवी-देवताओं और महान विभूतियों की कहानी लोगों को इस चलचित्र के जरिए दिखा सकते हैं…जिसके बाद वो फिल्मों की और जानकारी लेने के लिए लंदन गए और फिल्म मेकिंग का काम सीखा…जिसके बाद उन्होने वापस आकर 1913 में ‘राजा हरीशचंद्र’ बनाई…’राजा हरीशचंद्र’ को बॉलीवुड की पहली फिल्म मानी जाती है…जिसके बाद 1917 में उन्होने हिंदुस्तान सिनेमा कंपनी की स्थापना की…मूक फिल्मों के अलावा दादा साहेब ने बॉलीवुड की पहली फिल्म बनाई जिसमें आवाज डब की गई, वो फिल्म थी सेतुबंधन…वहीं अपने पूरे करियर में उन्होने केवल एक बोलती फिल्म बनाई जिसका नाम गंगावतरण था…भारतीय सिनेमा में दादा साहेब के अप्रतिम योगदान को देखते हुए उनके नाम पर हर साल दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड दिया जाता है…
2- Prithviraj kapoor
Indian Cinema की फर्स्ट फैमिली माने जाने वाले कपूर खानदान के सबसे पहले कलाकार और बॉलीवुड में लैंडमार्क कलाकार माने जाने वाले पृथ्वीराज कपूर…1906 में पेशावर में जन्मे पृथ्वीराज कपूर को हमेशा से ही फिल्मे आकर्षित करती थी…और अपने इसी जुनून को पूरा करने के लिए वो 1929 में अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर मुंबई चले जाए…वहां स्ट्रगल के बाद उन्हे सबसे पहला ब्रेक 1929 में साइलैंट फिल्म दो धारी तलवार में मिला…जिसमें बतौर एक्सट्रा उन्होने काम किया…इसके बाद कई साईलैंट फिल्मों में काम करने के बाद उन्हे पहली बोलती फिल्म आलम आरा में एक अहम किरदार मिला…पृथ्वीराज कपूर के निभाए किरदार फिल्म जगत में यादगार बन गए…सोहराब मोदी की फिल्म ‘Alexander, The Great’ में उनका निभाया हुआ सिकंदर का रोल या फिर के. आसिफ के ऐपिक पीरियड ड्रामा ‘मुगल-ए-आजम’ में मुगल बादशाह अकबर जैसे किरदारों ने उन्हें अमर बना दिया…
3- Sohrab Merwanji Modi
सोहराब मोदी Indian Cinema के बेहद शुरुआती दौर के अभिनेता, निर्माता और निर्देशक में से एक थे….1897 को मुंबई में एक पारसी परिवार में जन्मे सोहराब ने स्कूली शिक्षा पूरी करने का बाद पारसी रंगमंच के अभिनेता बन गए…ऐसा कहा जाता है कि मैट्रिक पास करने के बाद जब सोहराब अपनी प्रिंसिपल से मिलने पहुंचे और उनसे पूछा कि आगे उन्हें क्या करना चाहिए ?… इस पर उनकी प्रिंसिपल ने कहा कि तुम्हारी बुलंद आवाज सुनकर लगता है कि तुम्हें या तो नेता बनना चाहिए या फिर अभिनेता…और फिर सोहराब मोदी बन गए अभिनेता…सोहराब अपनी बुलंद आवाज और उससे भी बुलंद इरादों के लिए जाने जाते थे…शुरूआती दौर में थियेटर में बिताए उनके काम का प्रभाव उनकी फिल्मों में साफ नजर आता था…उन्होने ‘पुकार’, ‘Alexander, The Great’, ‘झांसी की रानी’ और ‘पृथ्वी बल्लभ’ जैसी सामाजिक विषय पर यादगार फिल्में बनाई…हालांकि ऐसा माना जाता है कि बॉलीवुड ने सोहराब के साथ न्याय नहीं किया….भारतीय सिनेमा के इतिहास में उनको जो जगह मिलनी चाहिए थी वो नहीं मिली…
4- Ashok Kumar
पद्म भूषण अशोक कुमार का असली नाम कुमुद कुमार गांगुली था…1911 में बिहार के भागलपुर में एक मिडिल क्लास बंगाली परिवार में अशोक कुमार का जन्म हुआ था…मध्य प्रदेश के खंडवा में शुरूआती पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होने यूपी के इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से अपना ग्रेजुएशन पूरा किया… Indian Cinema की बुलंदियां छूने वाले दादामुनि उर्फ अशोक कुमार जब फिल्म जगत से जुड़े तो उन्हें एक्टर बनने की कोई चाह नहीं थी…बल्कि वो फिल्मों के तकनीकी पक्ष के जुड़ना चाहते थे….सन् 1934 में न्यू थियेटर में बतौर लैब असिस्टेंस काम करने के दौरान उनके दोस्त और रिश्ते में बहनोई शशिधर मुखर्जी ने उन्हे बॉम्बे थियेटर अपने पास बुला लिया…लेकिन कहते है कि किस्मत में आगे किसका जोर चलता है…1936 में बॉम्बे टॉकिज के मालिक हिमांशु राय फिल्म ‘जीवन नैया’ बना रहे थे….लेकिन फिल्म के मैन एक्टर ने किसी कारण फिल्म में काम करने से मना कर दिया…जिसके बाद हिमांशु राय की नजर अशोक कुमार पर पड़ी और उन्होने अशोक को मुख्य भूमिका की पेशकश की…और फिर जीवन नैया से अशोक कुमार का बतौर अभिनेता फिल्मी सफर शुरू हो गया…फिल्म ‘अछूत कन्या’ में देविका रानी के साथ उनकी जोड़ी लोगों की सिर चढ़कर बोली….इतना ही सामाजिक विषय पर बनी ये फिल्म अपने वक्त में मील का पत्थर साबित हुई…अशोक कुमार ने ‘किस्मत’, ‘महल’, ‘पाकिजा’ और ‘Mr. India’ जैसी कई शानदार फिल्मों में काम किया…अशोक कुमार का फिल्मी करियर 6 दशक लंबा चला…इतना ही नहीं 1984 मे दूरदर्शन के शुरूआती दौर के सीरियल हमलोग में उन्होने सूत्रधार की भूमिका निभाई…साल 1999 में उन्हें भारत सरकार ने पद्म भूषण से नवाजा…
5- Himanshu Rai
हिमांशु राय Indian Cinema के शुरूआती दौर के उन एक्टर, डायरेक्टर और प्रोड्यूसरों में से एक है जिन्होने भारतीय सिनेमा को एक दिशा दी…हिमांशु राय का जन्म 1892 में कटक के एक धनी बंगाली परिवार हुआ था…उनके परिवार के पास अपना निजी थियेटर था…हिमांशु ने शुरूआती पढ़ाई के बाद कलकत्ता यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया और शांतिनिकेतन में रवींद्रनाथ टैगोर के साथ पढ़ाई की…इसके बाद हिमांशु कानून की पढ़ाई करने लंदन चले गए….वहां पहली बार उन्होने एक नाटक में काम किया जिसका नाम था ‘The Goddess’. जिसके बाद से राय की दिलचस्पी नाटकों और फिल्मों की तरफ मुड़ गई…जिसके बाद उन्होने 1925 में फ्रांज ओस्टेन की ‘Light of Asia’ में काम किया…जिसमें में वो एक्टर के साथ-साथ फिल्म के को-डायरेक्टर भी थे…उनकी कई फिल्मों में बतौर लीड एक्ट्रेस और भारतीय सिनेमा की सबसे पहली अभिनेत्रियों में से एक देविका रानी से उन्होने शादी कर ली…जिसके बाद हिमांशु राय और देविका रानी ने मिलकर बॉम्बे टॉकिज की स्थापना की…बॉम्बे टॉकिज के बैनर तले हिमांशु ने कई यादगार फिल्मों का निर्माण किया, जैसे- कंगन, इज्जत, सावित्री, अछुत कन्या, जीवन नैया…दादामुनि उर्फ अशोक कुमार को भी अभिनेता बनाने के पीछे हिमांशु राय का हाथ माना जाता है…बॉम्बे टॉकिज को भारतीय सिनेमा की सबसे पहला स्टूडियो माना जाता है…