फिल्म -नोटबुक
निर्देशक- नितिन कक्कर
कलाकार – जहीर इकबाल, प्रनूतन बहल, मीर मोहम्मद महरूस, मीर सरवर आदि।
रेटिंग – 4/5
निर्देशक नितिन कक्कड़ की फिल्म नोटबुक को वैसे तो परंपरागत प्रेम कहानियों से अलग होना ही ख़ास बना देता है लेकिन जो बात इससे भी ज्यादा फिल्म का स्तर ऊपर उठा देती है वो है इसका कश्मीर की समस्याओं के बारे में प्यार से बात करना । बिना किसी लाग लपेट के ये फिल्म स्थापित कर देती है कि कश्मीर की तकलीफों को दूर करने के लिए उसके दिल में उतरना होगा..कश्मीर के पास बैठकर उससे बात करनी होगी..पूछना होगा कि आखिर उसके इस खूबसूरत चेहरे पर जो ये ज़ख़्म हैं वो इन ज़ख्मों को इनायत समझ क्यों जी रहा है..हम सदियों से सुनते हैं आए हैं कि कोई भी समाजिक परिवर्तन बिना बेहतर शिक्षा के नहीं आ सकता..Notebook ये बात बहुत संजीदगी से कहती है..प्रेम की पृष्ठभूमि में सिली गयी ये कहानी क्यों देखी जानी चाहिए बता रहे हैं प्रशान्त प्रखर-
कहानी- ये कहानी है कबीर पंडित यानि जहीर इक़बाल और प्रनूतन बहल यानि फिरदौस की..कबीर कश्मीरी पंडित है और जिंदगी को बदल कर रख देने वाली एक घटना के बाद फौज छोड़ श्रीनगर आकर पिता के पुश्तैनी स्कूल वूलर पब्लिक में पढ़ाने का फैसला करता है…कबीर से पहले फिरदौस इस स्कूल की टीचर थी मगर वो भी जिन्दगी में आए एक बड़े बदलाव की वजह से ये स्कूल छोड़कर जा चुकी है..कुल जमा 7 कश्मीरी बच्चे इस फिल्म में पढ़ते हैं जो शुरू में कबीर से नफरत करते हैं मगर बाद में उसमें आए बड़े बदलाव देख प्यार करने लगते हैं..कबीर में आए इन बदलावों की वजह के एक नोटबुक जो टीजर डेस्क के एक दराज में उसे मिली है..ये नोटबुक है फिरदौस की..अब इस नोटबुक में ऐसा क्या लिखा है कि कबीर खुद को बदल देता है..वहीं दूसरी ओर फिरदौस शादी की दहलीज़ पर है…सबकुछ ठीक ठाक ही चल रहा है उसकी जिन्दगी में मगर कुछ होता है और फिरदौैस की दुनिया बदल जाती है..कबीर इस नोटबुक के जरिए फिरदौस के करीब होता जाता है लेकिन दोनों ने न एक दूसरे को देखा है और न हीं मिले हैं..फिल्म में मिलते हैं या नहीं ये आपको फिल्म देखने के बाद ही पता चलेगा..कबीर और फिरदौस के अलावा ये कहानी इन 7 बच्चों की भी है जिनमें सबसे खास बच्चा है इमरान यानि मीर मोहम्मद महरूस..इमरान फिरदौस के समय स्कूल में पढ़ता है मगर अचानक पढ़ाई छोड़ देता है….ये कहानी भी काफी संजीदगी से से पेश की गई है..फिल्म की कहानी वैसे तो 2014 में आई थाईलैंड देश की फिल्म टीचर्स डायरी की भारतीय एडाप्टेशन है.मगर इसे बहुत ही खूबसूरती से एडाप्ट किया गया है…फिल्म की पटकथा यानि स्क्रीनप्ले पर पूरे इत्मिनान से काम किया गया है..जिसके लिए सारे लेखकों को शुक्रिया कहना होगा..अच्छे डायलॉग्स और कहानी में किसी तरह की हड़बड़ी न होना फिल्म को काफी असरदार बना देते हैं… इसके लिए फिल्म के लेखकों दराब फारूक़ी, शारिब हाशमी, पायल अशर और बाकी लेखकों की टीम को बहुत बहुत शुक्रिया.. अरसे बाद कोई फिल्म आई है जिसमें फीलिंग है..ये फिल्म देखते वक्त आपको हर भावना पूरी महसूस होती है..जिसके लिए डायरेक्टर नितिन कक्कर के विजन को सलाम करना होगा..वो पूरा समय देते हैं अपने किरदारों को फलने फूलने के लिए और ये बात किसी भी डायरेक्टर को बड़ा बनाती है।
एक्टिंग – एक्टिंग की बात करें तो फिल्म के दोनो मुख्य किरदार जहीर इकबाल और प्रनूतन बहल की ये पहली फिल्म है लेकिन दोनों ने बहुत खूबसूरती से अपने किरदार निभाए हैं..दोनों की किरदारी समझ परदे पर दिखती है..वरना अपनी पहली फिल्म में कलाकार अक्सर लाउड हो जाते हैं लेकिन यहां वो अपने रोल के पूरी संजीदगी से निभाते हैं…खासकर प्रनूतन का लहजा, उनके बोलने का अंदाज, खुद को जिस तरह को कैरी करतीं हैं वो सब दिल जीत लेता है। इन दोनों के अलावा जिस कलाकार का काम आपको हैरान कर देता है वो है इमरान बने मीर मोहम्मद महरूस जो अभी बच्चे हैं लेकिन कश्मीर के जिस दर्द को परदे पर जी पाएं है वो अच्छे अच्छे दिग्गज कलाकारों के बूते से बाहर की चीज़ है। बाकी के किरदारों में इमरान के पिता की भूमिका में मीर सरवर भी प्रभावित करते हैं..साथ ही बाकी के चरित्र कलाकार भी किरदार के हिसाब से फिट लगे हैं।
खूबियां –
- फिल्म की कहानी, स्क्रीनप्ले और डॉयलॉग्स फिल्म की आत्मा हैं।
- दोनों मुख्य किरदारों ने पूरी गंभीरता से अपना काम किया है जो दिल छू लेता है।
- फिल्म में एक टीमवर्क दिखता है..हर डिपार्टमेंट में बहुत ढंग से काम हुआ है।
- कैमरावर्क बहुत ही कमाल का है, मनोज कुमार खटोई ने कश्मीर को कैमरे से स्पर्श किया है, ऐसा लगता है कश्मीर भी एक किरदार है फिल्म में , ये मुमकिन हुआ है मनोज के बेहतरीन सिनेमैटोग्राफी की वजह से ।
- गाने कम हैं लेकिन काफी अच्छे हैं, फिल्म की फील को और मजबूत करते हैं।
- न सिर्फ प्रिंसिपल कास्टिंग बल्कि हर छोटे बड़े किरदार की कास्टिंग जबरदस्त है।
- प्रोडक्शन डिजाइन विश्वनीय लगती है, मैं फिल्म पत्रकार हूं तो मैं जानता हूं कि बहुत से सेट्स बनाए गए होंगे लेकिन वो सेट्स कम बल्कि असल ज्यादा लगते हैं। इस चुनौती भरे काम के लिए आपको इसके पीछे लगे माइंड्स को जानना जरूरी है। हमें शुक्रिया कहना होगा उर्वी अशर कक्कड़ और शिप्रा रावल को जिनकी वजहे से फिल्म की दुनिया बनाई जा सकी।
- और सबसे बड़ी बात कि फिल्म में ढेर सारे खूबसूरत संदेश हैं ..सोचिए जिस फिल्म का अंत बच्चे के हाथ से डल लेक में बंदूक गिराने के शॉट से हो वो कितना बड़ा उद्देश्य लेकर चली होगी।
कमियां-
- वैसे तो फिल्म में कमियां कम हैं लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म कुछ देर कमजोर हो जाती है।
- कुछ जगह जल्दबाजी की गई मसलन फिरदौस की शादी वाले सीन में दिखाये जाने वाला घटनाक्रम बचकाना लगा।
- दोनो मुख्य किरदारों का पास्ट थोड़ा और एक्सप्लेन किया जा सकता था।
कुल मिलाकर नोटबुक देखी जानी चाहिए, इसकी दुुनिया में आपका जी लगेगा ये मेरा भरोसा है। सभी ने बहुत मन से काम किया है और फिल्म की नीयत बहुत सच्ची है। जरूर देखिए मेरी तरफ से फिल्म को 5 में से 4 स्टार्स।