फिल्म मूनलाइट की कहानी मायामी फ्लोरीडा के पड़ोस लिबर्टी सिटी की है..फिल्म इसके लेखकों के लिखे नाटक “इन मूनलाइट ब्लैक बॉयज़ लुक ब्लू” पर बनी है।
कहानी की पृष्ठभूमि में लिबर्टी सिटी है जो मायामी फ्लोरीडा के पड़ोस का इलाका है..मायामी दक्षिणी फ्लोरीडा का वो इलाका जहां सबसे ज्यादा अश्वेत लोग बसाये गये..इसको एक हाउसिंग प्रोजेक्ट की तरह 1933 में उस वक्त के राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रुसवेल्ट ने बसाया था ..ये काले लोगों की जीवनशैली में बदलाव के तहत बसायी गयी बस्ती थी और नाम भी लिबर्टी सिटी रखा गया ..मगर नाम के जुड़ने के बावजूद..लिबर्टी सिटी में लोगों की जिन्दगी 1930 के ग्रेट डिप्रेशन से निकल नहीं पायी।
फिल्म उसी अवसाद को अपने केन्द्रीय पात्र शिरॉन के जीवन के तीन कालखंडों में बराबर दिखाती है..ये तीन दौर हैं लिटिल( जब वो छोटा था , उसकी शारिरीक कमी के कारण उसे ये नाम मिला), ब्लैक (उसके टीनेज का टाइम जिसमें उसके सबसे आत्मीय साथी ने उसे ये नाम दिया) और शिरॉन ( जो व्यक्तित्व बड़ा होने पर उसने खुद बनाया). लिटिल के दौर में उसके साथ उसकी मां है जो ड्रग एडिक्ट है…शारीरिक संबंध बनाकर घर चलाती है…घर में लिटिल भी होता है…घर से बाहर कुछ लड़के हैं जो उस पर हावी हैं..उसके अवसाद को वक्त वक्त और गहरा करते हैं..इस अंधकार में डूबने से बचाने की कोशिश एक ड्रग डीलर कर रहा है जो चीखता है उसकी मां पर क्योंकि वो उसका ही लिया ड्रग लेकर लिटिल की जिन्दगी जहन्नूम बना रही है..दौर ब्लैक का है..ये नाम उसे उसके सबसे अजीज साथी ने दिया है..जिससे मिलकर उसे अपने गे होने का पता चलता है…और शिरॉन बनने पर वो अपने साथी से कहता है कि वो पहला और आखिरी आदमी था जिसने उसे छुआ था।
मूनलाइट में तीनो दौर..लिटिल…ब्लैक..शिरॉन वैसे तो अलग अलग अभिनेताओं ने निभाये हैं लेकिन यकीन जानिए वो कहीं से भी ये एहसास नहीं होने देंगे कि वो अलग अलग चेहरे हैं..उनकी उदासियां..उनकी बेचैनी सभी बचपन से लेकर पूरे शिरॉन तक एक जैसी हैं..फिल्म मूनलाइट का प्रवाह..इसकी भावनाएं..इसका माहौल..इसकी अदायगी..इसका संगीत फिल्म को इतना यूनिवर्सल बना देता है कि फिल्म देखने के बाद आपको अपने अवसाद से पहचान आसान होगी।