Interview Ayushmann Khurrana : ‘Article 15’ का मुद्दा ही हीरो है
Ayushmann Khurrana से हमारे संवाददाता शौनक जैन की खास बातचीत
रिपोर्टर –Ayushmann Khurrana आपने जब पहली बार कहानी सुनी तो आप पर क्या असर था इस कहानी का ?
Ayushmann Khurrana – मैं अनुभव सिन्हा ( फिल्म के डायरेक्टर) सर से मिलने गया था और उन्होंने मुझे एक रॉम-कॉम फ़िल्म का ऑफर दिया लेकिन मैने कहा कि मैं मुल्क देखने के बाद बहुत बड़ा फैन हुआ आपके काम का और जिस तरीके से आपने मुल्क में कम्युनल इश्यूज़ के साथ डील किया है वैसा पहले कभी किसी ने किया नहीं। तो मुझे वैसी ही कोई कहानी के बारे में बताएं.. मुल्क जैसे ही आर्टिकल 15 में जिस तरह जातिगत मसले को बेबाक तरीके से दिखाया है, ऐसा पहले कभी किसी हिंदी फ़िल्म में नही दिखाया गया है और क्योंकि मैं खुद भी काफी लिटरेचर और कहानियां पढ़ चुका हूँ, दलित लिटरेचर पढ़ चुका हूँ और इस कास्ट सिस्टम के भी खिलाफ हूँ, तो आप मेरी सोच समझ रहे होंगे.. ये सुनकर अनुभव सर काफी चौंक गए थे क्योंकि अभिनेता वैसे इन चीज़ों में पड़ते नहीं है और वो पहले ये भी सोच रहे थे कि मैं पुलिस वाले के रूप में कैसा लगूंगा मगर ओवरआल स्क्रिप्ट बहुत दिलचस्प है और लोगों की आंखे खोलने वाली है क्योंकि ज़्यादातर बड़े शहरों में लोग ऐसे सोचते नहीं है और बात भी नहीं होती और इंटरकास्ट और इंटररिलिजियस शादियां होती हैं…आम बात है लेकिन जो 70% हमारा देश है वहां पर अभी भी ये जीवन और मृत्यु का मसला है।
रिपोर्टर -तो आयुष्मान जब ऐसी फिल्में आप करते हैं तो क्या आपको लगता है कि आप लोगों का जागरुक करने का भी काम कर रहे हैं.
आयुष्मान खुराना- सही कहा आपने , ये फ़िल्म जनजागृति का ही काम करेगी क्योंकि ऐसी फ़िल्म कभी नही बनी है। काफी लोगो को लगता है की अब सब बराबर है। खासकर की जो शहेरों में रहते हैं और जो हमारे युवा हैं लेकिन ऐसा नही है, सब बराबर नहीं हैं।अभी भी भेदभाव होता है और मैने एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म देखी थी “इंडिया अनटच्ड” उसके अंदर बताया है कि तमिल नाडु के गांव में जब एक दलित, ब्राह्मण गांव से गुजरता है तो अपनी चप्पल निकाल कर चलता हैं और ये 2019 की बात है। गुजरात में ऐसे कुंएं हैं जो सिर्फ दलितों के लिए हैं.. दलितों के कुएंं अलग और ठाकुरो के कुएं अलग मतलब उन्हें पानी भी पीना साथ में मना है। राजस्थान में भी होता है। हर राज्य में है, हर जगह है कहीं कम तो कहीं ज्यादा।
रिपोर्टर -फ़िल्म असल घटनाओं पर आधारित है तो कौन सी घटना की बात हो रही है?
आयुष्मान खुराना – काफी घटानाएँ है जो आप पढ़ते रहते हैं। प्रिंट में पड़ते है, अखबारों में देखते हैं। चाहे वो नाबालिगों का रेप हो या चाहे बताया है की पुलिस कैसे डील करती है उनके साथ वो बताया गया है इसमे तो, असल ज़िन्दगी में जो होता है वही है। जैसे मंदिर में दलितों का घुसना। कहानी की पृष्ठभूमि और शूटिंग यूपी की है। इससे ज्यादा नही बता सकता वरना फिल्म का मजा किरकिरा हो जाएगा।
रिपोर्टर -आप पहली बार पुलिसवाले का किरदार निभा रहें हैं तो कैसा रहा आपका अनुभव?
आयुष्मान खुराना- मुझे लगता है कि इस फिल्म का कोई भी किरदार इतना महत्वपूर्ण नही है जितना कि इस फ़िल्म का मुद्दा है ।ये वैसा अफसर नहीं है जो फिल्मी है और मैने इसकी प्रेरणा नहीं ली किसी बॉलीवुड या हॉलीवुड फ़िल्म से। इसमे कोई स्लो मोशन शॉट्स नही है या कोई लौ एंगल शॉट्स नही है। बहुत रियलिस्टिक कहानी है और पुलिसवाले होकर भी आप कैसे संभाल सकते हैं हालात को वो दिखाया गया है। ये एक आउटसाइडर का नज़रिया है कि कैसे शहर से आपकी पोस्टिंग किसी छोटे गांव या कस्बे में हुई है जहां अभी भी जाति प्रथा घुली हुई है.. वो देखकर वो हैरान होता है और कैसे इसे वो ठीक करने की कोशिश करता है।यही एक कहानी है इस फ़िल्म की।
रिपोर्टर -क्या एक निर्देशक का नाम आपको फ़िल्म साइन करने में प्रभावित करता है? जैसे अनुभव सिन्हा एक जानामाना नाम है तो क्या आपको ये लगता है कि नाम होने से फ़िल्म सही बनेगी और आप साइन कर लेते हैं?
आयुष्मान खुराना- मैं सोचता हूँ कि और किसी भी चीज़ से बढ़कर जो निर्देशक है उन्हें फ़िल्म के विषय के बारे में जानकारी होनी चाहिए और इस तरह कहानी उनके दिल के बहुत ही करीब हो जाती है। अनुभव सर तो पूरी तरह डूबे हुए हैं अपनी कहानी में..बहुत जागरुक निर्देशक हैं वो.. उन्हें पता है इसके बारे में , हर पहलु को वो जानते हैं और उन्होंने मुझे भी किताबें दीं और कहा कि मुझे पढ़नी चाहिए फिल्म के विषय में गहरा उतरने के लिए और मैं खूब पढ़ा। तो बस यही तो चाहिए आपको क्योंकि मैं नए निर्देशको के साथ भी तो काम कर रहा हूँ, वो तो अनुभव सिन्हा ने पिछले साल इतनी उम्दा फ़िल्म ‘मुल्क’ दी हमे लेकिन सच कहूं तो इससे कोई फर्क नही पड़ता, एक अच्छी स्क्रिप्ट कहीं से भी आ सकती है वो उसकी नियती है।
रिपोर्टर -आयुष्मान पिछले कुछ समय में आपने ढेर सारी फिल्में साइन कीं। तो हमें बताइये की कितनी है इस वक्त आपकी झोली में फिल्में ?
आयुष्मान खुराना- (हंसते हुए) पांच फिल्में हैं सिर्फ। तीन इस साल आने वाली हैं। आर्टिक्ल15, ड्रीम गर्ल और शूजित सरकार की गुलाबो सिताबो इस साल आनेवाली हैं। बाला और शुभ मंगल ज़्यादा सावधान आगे आएंगी। जल्दी जल्दी शूट कर लेता हूं फिल्में इसलिए कर लेता हूं इतनी फिल्में..आर्टिकल 15 तो सिर्फ 31 दिन में शूट कर ली थी।
रिपोर्टर -देखा जाए तो शुरुआत में एक अलग सी पहचान बना ली थी आपने। मगर अब देखा जाए तो ऐसी फिल्में भी आईं है जिन्हें हम कमर्शियल कह सकते हैं और अब दूसरी कंटेंट से भरपूर फिल्में तो हैं ही..अच्छा समय है आपके लिए।
आयुष्मान खुराना- जी हां।बिल्कुल अच्छा समय है.. अच्छी स्क्रिप्ट्स मिल रहीं हैं और इस साल मैं उन डायरेक्टरों के साथ काम कर रहा हूँ जिन्होंने पहले काफी अच्छी फ़िल्में दी हैं। चाहे वो शूजित सरकार हो या अनुभव सिन्हा हो या अमर कौशिक हों, स्त्री के निर्देशक, सबके साथ काम करने का मौका मिल रहा है। अब तक मैने ज्यादातर नए फिल्मकारों के साथ काम किया है। शरत कटारिया के साथ दम लगा के हईशा ..अश्विनी के साथ बरेली की बर्फी .. तो मैने काफी डायरेक्टरों पर भरोसा किया है, उनके करियर के शुरुआती दौर में लेकिन पहली बार है कि मैं नामी डायरेक्टर्स के साथ काम कर रहा हूँ। तो वक्त बढ़िया और बैलेंस है ये कहूंगा मैं।
रिपोर्टर – इस विषय ने आप पर एक अभिनेता और एक व्यक्ति के तौर पर क्या छाप छोड़ी?
आयुष्मान खुराना- इस विषय को मैं बहुत अंदर तक महसूस करता हूँ। हमने इतिहास की किताबों में बचपन से चार वर्णों को लिखा है, बच्चे लिखते हैं.. ये छोटे-छोटे 7-8 कक्षा के बच्चे। वो पढ़ने की ज़रूरत ही नहीं,उससे आपका कुछ ज्ञान तो बढ़ नहीं रहा है। मुंबई ऐसा शहर है जहां आप जैसे इंसान हैं और जैसा आपका काम है उससे आपको पहचान जाता है। बहुत अलग शहर है ये। ऐसे ही पूरे हिंदुस्तान में होना चाहिए, हर जगह होना चाहिए। आपकी जात को लेकर इतना बवाल नहीं होना चाहिए क्योंकि बाहर के देशों में तो ऐसा कुछ है ही नहीं। हमारे ही घर में बर्तन अलग अलग होते हैं ..जो हमारे घरों में काम करते है उनके ये कितनी खराब बता है… बाहर के देशों में तो आप अपने ड्राइवर के साथ बैठ कर खाना भी खा सकते हैं। तो ये हमारे सिस्टम हमारी परवरिश का एक हिस्सा है जो धीरे धीरे निकलेगा।
रिपोर्टर -जब आप कोई फ़िल्म साइन करते हैं तो उससे पहले आप क्या क्या देखते हैं?
आयुष्मान खुराना – मैं सबसे पहले तो कहानी देखता हूँ। फिर अगर निर्देशक का पहले का कुछ काम रहा तो वो और आप काफी बार बात करके पहचान जाते हैं कि किसी का नज़रिया क्या है और वो कैसे इंसान हैं।
रिपोर्टर -बरेली की बर्फी को छोड़ दें और देखें तो आपने वैसे सोलो फिल्में ही की हैं, इसके पीछे कोई वजह?
आयुष्मान – ऐसा नही है। अब गुलाबो सिताबो में अमिताभ सर के साथ काम कर रहा हूँ और फिर शुभ मंगल ज़्यादा सावधान में मेरे बॉयफ्रेंड की तलाश कर रहे हैं तो वो भी दूसरा लीड ही होगा। तो मैं और भी फिल्में कर रहा हूँ जो मल्टी-स्टारर हैं।
रिपोर्टर -आपको कभी किसी अभिनेता ने प्रभावित किया है?
आयुष्मान- हाँ, बहुतों ने…मैं शाहरुख सर का बहुत बड़ा फैन रहा हूँ और शायद उन्ही को देख कर मैने जर्नलिज्म और मास कम्युनिकेशन की डिग्री ली। आमिर सर की स्क्रिप्ट चोइसेस मुझे बड़ी पसंद है। अभी अमिताभ सर के साथ भी काम करने का मौका मिल रहा है। तो यही सब रहे हैं।
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