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अर्जुन कपूर की ‘इंडियाज़ मोस्ट वांटेड’ सबकुछ लगा कर भी गंवा रही

फिल्म की कहानी कमज़ोर नहीं। ना ही उसमें आकर्षण की कमी है। लेकिन ज़रूरी चीजें थोड़ी थोड़ी है। और कहीं कहीं हैं। फ़िल्म कमाल की बन सकती थी। लेकिन इतनी प्रभावी नहीं कि इतिहास में यादगार हो जाए। चिंता की बात यह कि अर्जुन कपूर की फ़िल्म को मनमुताबिक दर्शक नहीं मिल रहे।

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अर्जुन कपूर की India’s Most Wanted सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है । हालांकि चुनावों में भाजपा की भारी जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बायोपिक PM Narendra Modi भी एक अच्छा विकल्प है । इंडिया’ज मोस्ट वांटेड’ आईबी के ऑफिसर प्रभात (अर्जुन कपूर ) को अपना नायक बनाती है। प्रभात कपूर का नेटवर्क एक सक्षम व सतर्क नेटवर्क है। जिस पर उन्हें काफ़ी भरोसा भी है। कई मर्तबा आला अधिकारियों की जानकारी बिना ही मिशन पर निकल पड़ते हैं। इस बार उन्हें ख़तरनाक आतंकवादी के नेपाल में छिपे होने की ख़बर मिली है। आला अधिकारियों के मना करने के बाद भी प्रभात अपने साथियों साथ भारत के सबसे बड़े आतंकी को पकड़ने के लिए निकल पड़ता है। बिना किसी भी हथियार के।

फिल्म में देश के अलग-अलग हिस्सों में हो रहे सिलसिलेवार बम धमाकों का प्लाट रखा गया है। कहानी यह दिखाने का प्रयास करती है कि किस तरह जांबाज अफसर फर्ज के लिए सबकुछ त्याग करने के लिए तैयार रहते हैं। अर्जुन कपूर लीड में है। उनके साथ में अधिकारियों की टीम में प्रशांत अलेक्जेंडर, गौरव मिश्रा, आसिफ खान, शांतिलाल मुखर्जी तथा बजरंगबली सिंह को रखा गया है। साथी कलाकारों ने सहज अभिनय किया है। सभी आसपास के चेहरे लगे हैं। इनका होना खास संजीदगी जगाता है। इन सभी के बीच अर्जुन कपूर को फायदा ही हुआ है। फ़िल्म एक बार फिर उन्हें चर्चा में ले आई है।

राजकुमार गुप्ता की यह स्पाई थ्रिलर अक्षय कुमार की ‘बेबी’ फ़िल्म की याद दिलाती है। फ़िल्म सुहैब इलियासी के मशहूर टीवी शो ‘इंडियाज मोस्ट वांटेड इंडिया फाइट्स बैक’ से नाम पर सीधे रिलेट करती है। सच्ची घटनाओं पर आधारित होना फ़िल्म की खासियत है। वास्तविक लोकेशन्स पर सीन की शूटिंग दूसरी बड़ा आकर्षण। पटना के लोगों को यह फ़िल्म ख़ासी पसन्द आएगी। शहर के दृश्य सीधा कनेक्ट बनाते हैं। राजकुमार गुप्ता पहले भी नो वन किल्ड जेसिका आमिर एवं रेड किस्म की फिल्में दे चुके हैं। वास्तविकता आपकी फिल्मों की बड़ी ताक़त रही है। राजकुमार गुप्ता की इस फ़िल्म में कोई फीमेल लीड नहीं है। ना ही अनावश्यक गाना-बजाना डाला गया है। वास्तविकता यही मांग करती थी । राजकुमार गुप्ता ने अपनी ख़ास पहचान को छोड़ा नहीं है। चमक-दमक से दूर रहकर सकारात्मक फिल्में देना उन्हें बॉलीवुड में अलग करता है।

आतंकवादी युसूफ की खोज दिलचस्पी जगाती है। फिल्म के किरदार आसपास के जीवन से प्रेरित हैं। जोकि चीजों को और दिलचस्प बनाते हैं। कहानी ध्यान खींचने में सक्षम दिखती है। किंतु ठोस पटकथा की कमी उसे अगले पल पीछे धकेल देती है। फिल्म की कहानी कमज़ोर नहीं। ना ही उसमें आकर्षण की कमी है। लेकिन ज़रूरी चीजें थोड़ी थोड़ी है। और कहीं कहीं हैं। फ़िल्म कमाल की बन सकती थी। एक हद तक ठीक ठाक भी है। लेकिन इतनी प्रभावी नहीं कि इतिहास में यादगार हो जाए। इस मिजाज के जबरदस्त विषय दर्शकों को आकर्षित करते हैं। चिंता की बात यह कि अर्जुन कपूर की फ़िल्म को मनमुताबिक दर्शक नहीं मिल रहे। ज़्यादातर लोग पीएम मोदी की फ़िल्म तरफ़ मुड़ गए हैं। देशभक्ति की जज़्बे पर बनी ‘इंडियाज़ मोस्ट वांटेड’ नई संभावनाओं की फ़िल्म अवश्य है। किंतु भरोसा नहीं बना पा रही। पर्याप्त दर्शक नहीं जुटा पा रही है।

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